
कीर्ति माला की कलम से…✍
विचार। बिहार जिसे एक उपेक्षित राज्य माना जाता रहा है। लेकिन कहीं-न-कहीं कहा जाता है कि यहां के लोग प्रतिभाओं के धनी होते हैं। ऐसे कई बड़े सख्शियत हैं जो अपने प्रतिभाओं से बिहार का लोहा मनवा चुके हैं।
उदाहरणस्वरूप चाहे भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद हो या राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर या फिर प्रसिद्ध इतिहासकार रामशरण शर्मा या फिर वीर योद्धा वीर कुंवर सिंह हो सबने अपनी प्रतिभा से केवल बिहार ही नहीं बल्कि पूरे देश को गौ्र्वान्वित कर देश के इतिहास में अपना नाम दर्ज कराया है।
इसी धरती के एक और बड़े शख्सियत वशिष्ठ नारायण सिंह जी भी है। जिन्होंने अपने प्रतिभा से देश ही नहीं विदेशों में भी अपना लोहा मनवा चुके हैं। अर्थात, एक बड़े गणितज्ञ, लेखक के रूप में जाने जातेहैं। वर्तमान में उनकी हालत यह है कि वे लोगों से बात तक नहीं कर पाते हैं।
इतनी बड़ी सख्सियत को इस हालत में देख अपना विरासत खोता हुआ दिख रहा है। हमें अपने विरासत को बचाना होगा। इसपर विचार करना होगा कि सिर्फ नाम ही नहीं बल्कि सम्मान भी देने की जरूरत है।
जिस तरह एक चिड़ियां एक-एक तिनका चुन-चुनकर अपना आश्रय बनाती है ठीक उसी प्रकार हमें इन खोती विरासत को एक-एक कर बचाना होगा।
एक ऐसी विरासत जिनका मानसिक संतुलन बिगड़ने के बावजूद भी लिखने-पढने का शौक देख अर्थात उनके कमरों के दिवारों पर गणित का फार्मूला और शायरी लिखा देख यह जगजाहिर होता है कि सरस्वती का भूख कभी खत्म नहीं होता। उनका यह चमत्कार लोगों को यह सीख देता है कि पढाई का कोई उम्र नहीं होता।
“जब तक सांस, तब तक आस” की कहावत को उन्होंने सार्थक स्वरूप प्रदान किया है। उनकी यह प्रेरणा युवाओं के लिए प्रेरणा का प्रतीक चिन्ह बनकर सामने आया है। हमें सोच बदलने की जरूरत है कि सिर्फ पैसों का ही नहीं मनुष्यों का भी इज्जत करना चाहिए।