रघुनंदन मेहता की रिपोर्ट,
ऐसी भी नहीं है कि गिरिडीह जिले में वन विभाग पुरी तरह निष्क्रीय हो गया है। वन विभाग द्वारा अवैध आरा मिलों पर अंकूश लगाने के लिए कई बार छापामारी अभियान भी चलाया गया लेकिन वन विभाग व लकडी माफिया व अवैध आरा मिल के संचालकों के बीच हमेशा लुका छिपी का खेल दारू है।
ग्रामीण क्षेत्रों के लकडी माफिया व आरा मिल संचालक हमेशा विभाग के साथ तु डाल डाल तो मैं पात पात के कहावत को चिरतार्थ कर रहे हैं । पूर्व में वन विभाग प्राप्त संख्या में कर्मी नहीं रहने का घडियाली आंसू दिखाकर अपना हाथ खडा कर लेते थे। लेकिन बिते वर्ष 2017 में विभाग में पडे रिक्त पदों पर वनरक्षी की व्यक्ति भी कर ली गयी है।
बावजूद द्वारपहरी समेत, लेदा, रघुसिंघा जमुआ के नावाडीह, अंधरकोला आदि जगहों पर धड़ल्ले से अवैध आरा मिल का संचालन किया जा रहा है।
एक ओर वन विभाग द्वारा प्रति वर्ष हजारों हेक्टेयर वन भूमी पर वृक्षारोपण कर खाली पड़े वन भूमी को अच्छादित करने में जूटे हुए हैं, लेकिन प्राकृतिक साल, पियार, आसन, महुआ जैसे हर भरे जंगल के सरंक्षण पर किसी तरह का ध्यान नहीं दिया जा रहा है। जिससे प्रतित होता है कि प्राकृतिक जंगल आने वाला समय में किताबों की कहानी बन कर रह जाएगी।
गिरिडीह का लकडी जाता है जामताड़ा…
विश्वससूत्रों के अनुसार बताया जाता है कि ग्रामीण क्षेत्रों में संचालित अधिकांशतः अवैध आरा मिलों में लकडी माफिया रात के अंधेरे में मोटा लकडी को ट्रेक्टर के माध्यम से आरा मिलों में डम्प कर मील से जरूरत के अनुरूप कटींग कर यहीं आकार देकर वाहनों से जामताडा जिले में बेचा जा रहा है। ऐसी भी नहीं है कि इस की भनक वन विभाग को नहीं रहती है।
क्या कहते हैं पदाधिकारी…
अगर कहीं अवैध आरा मील का संचालन किया जा रहा है तो इस की सूचना नहीं थी। किसी भी किमत पर अवैध आरा मील का संचालन नहीं होने दिया जाएगा।- वन प्रमंडल पदाधिकारी, पश्चमि गिरिडीह