सीधी- मध्य प्रदेश माध्यमिक शिक्षा मंडल बीते माह परीक्षा परिणामों की घोषणा आज कर सकता हैं. जिसको लेकर छात्रों की उत्सुकता बनी हुई है छात्रों को परिणाम को देख कर बिचलित होने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि प्रणाम के समीक्षा करने की आवश्यकता है.
परिणाम सुंनकर छात्रों को विचलित होने को ना तो जरूरत है और ना ही धैर्य खोने की जरूरत उक्त बातें सोच कर सोचो संगठन के संचालिका प्रीत जमींदार सिंह चौहान ने छात्रों को साहस देते हुए कहां है. कुमारी सिंह ने आगे कहा कि एम .पी. बोर्ड 10 वीं,12 वीं का रिजल्ट घोषित होने को है.
मेरा समस्त अभिवावकों से निवेदन है कि परिणाम चाहे कुछ भी हो आपके उम्मीद के बराबर अथवा कम परन्तु आप अपने बच्चो को प्रोत्साहित करते हुए उनका साथ दे और उन्हें आगे की पढ़ाई के लिए विषय चुनाव और वो कोन सा कोर्स करना चाहते है.
इसके लिए उन्हें स्वतंत्रता पूर्वक धैर्य से सहयोग करे भविष्य में पढ़ाई अपके बच्चो को करनी है बेहतर भविष्य के लिए इतना सहयोग आप सबको देना चाहिए, आप अपने बच्चो की किसी और के बच्चों से तुलना तो बिल्कुल भी न करें कि शर्मा जी के बेटे ने गणित लिया है. तो तू भी ले हो सकता है.
आपका बच्चा दूसरे क्षेत्र में बहुत अच्छा करे आप दिल से सहयोग करे प्यार करे बच्चो को समझे उन्हें प्रेशर ना दे कि वो डरते रहे अपने आप को लेकर तरक्की के लिए स्वतंत्रा अति आवश्यक है, ईश्वर ने हर बच्चे को एक अलग प्रतिभा दी है, जबकि माता पिता या वरिष्ठ बच्चे को अपनी इच्छा अनुसार उसका भविष्य तैयार करना चाहते हैं, बच्चा भी अपने भविष्य को लेकर दुविधा में रहता है ऐसी स्थिति में अभिभावक एवं बच्चे दोनों को ही कैरियर से संबंधित सावधानियों की बहुत आवश्यकता है, ताकि वह अपने जीवन में सफल हो सके.
बच्चा पढ़ता तो है, परंतु उसे कैसे पढ़ना है क्या पढ़ना है और कितना पढ़ना है इसकी जानकारी का अभाव होता है. इन्हीं बातों को ध्यान रखकर आप उनका सहयोग करे उनकी मदद करें, पर्सेंट चाहे कुछ भी आए आप मायूस ना हो और ना ही अपने बच्चो को होने दे. 95% वाले और 50% वाले एक ही साथ एक ही कॉम्पिटिशन में बैठते है और सफल भी होते है, “छू लो आसमान किसने रोका है” माता-पिता की इच्छा होती है कि उनका बच्च परीक्षा में अव्वल आये. खासकर बोर्ड परीक्षा में.
यह इच्छा असल में बच्चे के सुनहरे भविष्य के सपने से जुड़ी होती है. इस सपने का होना बहुत स्वाभाविक भी है, लेकिन कई बार यह सपना पद, पैसा और रुतबा पाने जैसी महत्वाकांक्षाओं का रूप ले लेता है. माता-पिता को लगता है उनके बच्चे के लिए यह सब जरूरी है और इसे परीक्षा में अव्वल आकर ही हासिल किया जा सकता है.
दसवीं, बारहवीं की बोर्ड परीक्षाओं के समय स्थिति कुछ ज्यादा ही नाजुक हो जाती है, क्योंकि यह वो मोड़ होता है, जहां से बच्चों को आगे की पढ़ाई के लिए एक दिशा मिलती है. माता-पिता बच्चे को वे तमाम सुविधाएं देने की कोशिश में लगे रहते हैं, जो अच्छा रिजल्ट लाने में मददगार हो सके.
माता-पिता का जैसे सबकुछ उनकी परीक्षा में दावं पर लग गया हो, साल भर इस दबाव से जूझते हुए बच्चे पढ़ते हैं और हर हाल में अच्छे रिजल्ट के लिए परीक्षा देते हैं. हालांकि, पेपर कितना भी अच्छा हुआ हो, वे इस दबाव को जीते हुए ही रिजल्ट का इंतजार करते हैं. ये स्थितियां कई बार कुछ परिवारों में एक अदृश्य तनाव का माहौल निर्मित कर देती हैं.
बच्चे और माता-पिता, सब पर यह तनाव हावी होता जाता है, लेकिन कोई यह नहीं सोचता कि क्या वाकई इस तनाव की जरूरत है. आखिरकार परीक्षा का परिणाम आ जाता है. कुछ के यह लिए सुकून भरा होता है. उनके लिए पहले से तय मंजिल की ओर चलने का रास्ता खुल जाता है.
लेकिन, कुछ बच्चों की परीक्षा का परिणाम उनकी उम्मीदें तोड़ने वाला होता है. खासतौर पर माता-पिता की उम्मीदें. ऐसे में देखा जाता है कि अधिकतर परिवारों में माता-पिता और भाई-बहन तक खराब रिजल्ट लानेवाले बच्चे की ओर मुखातिब होते हैं शिकायतों का पिटारा लेकर.
रिजल्ट में कम नंबर आने या फेल हो जाने से बच्चे के मन को हो रही तकलीफ से बेपरवाह, कोई उसकी कमियां गिनाता है, कोई उसे सबके सपनों को चूर-चूर कर देने का दोषी ठहराता, कोई उसे उसके भविष्य के अंधकार में चले जाने के डर का एहसास कराता है. जबकि, ऐसी स्थिति में जरूरत होती है, कोई तो हो जो उसके कंधे पर हाथ रखे, उसके साथ खड़ा हो और कहे कि किसी भी परीक्षा परिणाम जिंदगी से बड़ा नहीं होता, उठो और आगे के रास्ते के बारे में सोचो.
ऐसे रास्ते के बारे में सोचो, जो तुम्हें बेहतर कल की ओर ले कर जाये. जितना वक्त तुम खराब परिणाम से दुखी होने, निराशा और अवसाद को खुद पर हावी होने देने में जाया कोरेगे, उतने वक्त में तुम अब आगे बेहतर क्या हो सकता है, इस बारे में सोच सकते हो. हार के बाद भी जीत संभव है, बशर्ते अगर इंसान परीक्षा से गुजरना न बंद करे.
ऐसा इसलिए जरूरी है, क्योंकि कई बार बच्चे अच्छा रिजल्ट न आने की पीड़ा के साथ ही परिवार के सदस्यों की नाराजगी का सामना नहीं कर पाते. ये स्थिति उन्हें गहरी निराशा, अवसाद, घर छोड़ कर कहीं चले जाने के फैसले ही नहीं, कई बार तो आत्महत्या तक की कगार तक ले जाती है.
अब जबकि इस साल के दसवीं-बारहवीं के रिजल्ट कहीं आ चुके हैं, कहीं आनेवाले हैं, आगे की पढ़ाई के लिए प्रवेश परीक्षाओं के परिणाम आने का भी सिलसिला शुरू हो चुका है, ऐसे में जरूरी है कि अभिभावक हर हाल में अपने बच्चे के साथ खड़े हों. बच्चे को रिजल्ट अच्छा न आने पर डांट कर हतोत्साहित करने की बजाय, इसके कारण जानें और बच्चे को मोटिवेट करें. भावनात्मक सहारा दें.