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शिखा प्रियदर्शिनी,
मुंबई। विशेष फिल्म्स की फिल्मों के विपरीत लेखक निर्देशक श्रीजीत मुखर्जी की फिल्म ‘बेगम जान’ बंगाली फिल्म ‘राज कहिनी’ पर आधारित एक ऐसी तवायफ़ बेगम जान की यात्रा है जिसने विभाजन जैसे दर्दनाक हादसे को भुगता है। उसके बाद से आज तक औरतों की स्थिति में आये बदलाव से बेगम जरा भी तवज्जो नहीं रखती।
बेगम जान यानि विद्या बालन एक ऐसी बाल विधवा है जिसे बचपन में ही वेश्या बना दिया गया था। बाद में वो तवायफ बनी। इसके बाद उसने एक राजा के सहयोग से बड़ा सा कोठा विकसित किया जिसमें उसने चुन चुन कर दस लड़कीयों को रखा। बेगम जान डिस्प्लीन के मामले में बहुत सख्त है, दरअसल उसकी अभी तक की दुखद जर्नी ने उसे खुद ब खुद और सख्त बना दिया है। उन्हीं दिनों देश में बंटवारे के बाद रेडक्लिफ रेखा बेगम जान के कोठे के बीचों बीच खिंच जाती है लिहाजा उसका कोठा उजाड़ दिया जाता है। बाद में बेगम जान और उसकी लड़कियों को काफी कुछ सहना पड़ता है।
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— taran adarsh (@taran_adarsh) April 13, 2017
श्रीजीत मुखर्जी फिल्म भलीभांती शुरू करते हैं लेकिन जल्दी ही वे रास्ते से भटक जाते हैं लिहाजा फिल्म भी भटकने लगती है। फिल्म में इतने किरदार हैं कि उन्हें पहचानना मुश्किल हो जाता है। फिल्म का पहला और वर्तमान माहौल एक हद तक वास्तविकता से भरा दिखाया गया है। पटकथा काफी धीमी और एक हद तक कमजोर रही। संवाद एक हद अच्छे रहे। फिल्म का संगीत कहानी के अनुसार ही है।

Begum Jaan
बेगम जान के भूमिका में विद्या ने पूरी तरह घुस कर काम किया है। उसका गुस्सा, सख्ती तथा डिसिप्लीन देखते बनता है। नसीरूद्धीन शाह छोटी सी भूमिका में भले लगते हैं लेकिन विवेक मुश्रान और पितोबाश जबरदस्त काम कर गये। इनके अलावा पल्लवी शारदा, गौहर खान, इला अरूण, आशीष विद्यार्थी, चंकी पांडे तथा रजित कपूर आदि कलाकरों का सहयोग सराहनीय रहा।
अंत में फिल्म के लिये यही कहना होगा कि बेगम जान अपने उद्देश्य और मापदंडो पर पूरी तरह से खरी नहीं उतर पाती है।