
प्रवीण मौर्य
बिलासपुर। जिला मुख्यालय से 25 किमी की दूरी पर स्थित एवं मस्तुरी जनपद क्षेत्र से महज 5 किमी स्थित पाराघाट में वसुंधरा स्टील पावर प्लांट की गतिविधियां फिर से जोर पकड़ रही है और इसी के साथ ग्रामीणों एवं किसानों की नाराजगी भी जोरो पर हैं, क्योंकि जिन शर्तों पर प्लांट के मालिकों ने ग्रामीणों से भूमि ली थी। उनमें से एक भी शर्त पुरी नही हुई। प्लांट मालिकों ने वर्ष 2006 में इस क्षेत्र में पाराघाट, बेलटुकरी और भनेशर में लगभग 130 एकड़ जमीन क्रय की थी।
उस वक्त मिठी-मिठी बात कर जनसुनवाई में ग्रामीणों से उनकी सहमती ले ली गई। तब से भुमि के वास्तविक मालिक किसान खेती से वंचित हो गए। बदले में किसानों को न तो नौकरी मिली न ही क्षेत्र में सीएसआर मद के काम हुए 13 साल से किसान अपनी जमीन से बेदखल है। अब कंपनी के मालिक बार2 भूमि पूजन कर रहे हैं। और भूमि पूजन का नाटक कर रहे हैं।
इसके पूर्व भी दो बार हो चुका है। जमीन का अधिग्रहण तथा क्रय करने की जो नीति वर्ष 2006 में थी। उसमें बाद में व्यापक परिवर्तन हुआ और यह शर्त रखी गई की बाजार मुल्य से चार गुना अधिक दाम पर उद्योग के लिए भूमि क्रय की जा सकेगी। साथ ही जितनी जमीन क्रय की जाएगी उतनी ही जमीन कृषि प्रयोजन के लिए अनियत्र दी जाएगी।
भूमि स्वामी को प्लांट में योग्यता अनुसार नियोजन दिया जाएगा। यह भी शर्त थी कि यदि विस्थापित कुशल नहीं होगा तो उसे नियोजक प्रशिक्षण दिलाएगा और प्रशिक्षण उपरान्त प्लांट में नियोजित करेगा। क्षेत्र के किसान नेता और स्थानीय हितों के लिए सदैव संघर्षरत नागेन्द्र राय ने बताया की वसुन्धरा प्लांट में क्षेत्र के नागरिकों के साथ धोखा हुआ है। व्यक्तियों के साथ ही क्षेत्र के पर्यावरण को पुरी तरह बरबाद किया जा रहा है।
लिलागर नदी से किसानों की खेती के लिए ही जल आपूर्ति कठीन होती जा रही है। ऐसे में उद्योगो को पानी देना कहां की अकलमंदी है। प्लांट में एक ओर नदी का पानी दिखावे के लिए इस्तेमाल होगा साथ ही गैर कानूनी तरीके से सैकड़ों की संख्या में भूमिगत जल के बोर किए जाएगें। जब किसान को गर्मी की धान नही बोने दी जाती तो उद्योग के लिए पानी पिढ़ियों के साथ अन्याय है।
क्षेत्र में मगरमच्छ को संरक्षण देने के लिए राष्ट्रीय मगरमच्छ पार्क कोटमीसोनार पर विभाग करोड़ों रुपये खर्च करता है और इसके कोर क्षेत्र में प्राकृतिक स्थिति को संरक्षित करने के लिए कानूनी बाध्यता है। जबकि वसुन्धरा प्लांट की अनुमति इस तथ्य को छुपा कर ली गई है। वर्ष 2006 की जनसुनवाई को नए संदर्भाे में फिर से प्राप्त किया जाए। अन्यथा क्षेत्र के किसान अपने मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए आंदोलन करने बाध्य होंगे।