सुशील कुमार बंसल की रिपोर्ट,
सीहोर जिले से 30किमी दूर कोलरडेम में शुरुआत हो चुकी है। इस दिन का आदिवासी संस्कृति से जुड़े प्रेमी बेसब्री से इंतजार करते है, और इसकी शुरुआत आज से कोलरडेम में हो गई।
जहां पर आदिवासि लोगों ने अपने संस्कृति के प्रति इतना प्रेम होता है कि इस त्यौहार को बड़े ही धूमधाम से मनाते हैं। इसमें मस्ती व उल्लास होता है। आदिवासी संस्कृति की झलक भी नजर आती है। रोजगार की तलाश में दूर-दूर तक जाने वाले ग्रामीण जहां कहीं भी होंगे, भगोरिया की महक उन्हें अपने गांव लौटने के लिए वापस मजबूर करती है।
वार्षिक मेले भगोरिया की प्रमुख विशेषता यह है कि 7 दिनों तक लगातार यह चलता है। हर दिन कहीं न कहीं भगोरिया मेला रहता है। इन मेलों में गांव के गांव उमड़ पड़ते है। छोटे बच्चे से लेकर वृद्घ तक अनिवार्य रूप से इसमें सहभागिता करते है।
ढोल, मांदल, बांसुरी जैसे वाद्य यंत्रों की मीठी ध्वनि और लोक संगीत के बीच जब सामूहिक नृत्य का दौर भगोरिया मेले में चलता रहा दिनभर चारों ओर उल्लास ही उल्लास बिखर हुआ था आदिवासी महिला बच्चे बुजुग डीजे और बैड की धून पर नाच रहे थे।