
प्रियेश शुक्ला
गोरखपुर। पूर्व राष्ट्रपति और देश के मिसाइल मैन डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम को आग्नेयास्त्रों को बनाने के लिए जाना जाता है। एक ऐसा ही और सख्श है जो आग्नेयास्त्र और ब्रह्मास्त्र बनाता है, लेकिन ये आग्नेयास्त्र जीवों को मारता नहीं है बल्कि केवल उन्हें खदेड़ता है। फसलों की रक्षा करने वाले इन आग्नेयास्त्रों को बनाने वाले कोई और नहीं बल्कि शून्य बजट प्राकृतिक खेती के प्रणेता पद्मश्री सुभाष पालेकर हैं। पालेकर द्वारा बनाए गए ये आग्नेयास्त्र कुछ और नहीं, फसलों की सुरक्षा को प्राकृतिक विधि से बनाई गई दवाएं हैं। आइए, इनके बारे में जानें-
कीटों को मारते नहीं, फसल सुरक्षा करते हैं ‘पालेकर के आग्नेयास्त्र’…
-ब्रह्मास्त्र: 20 लीटर गोमूत्र, दो किलो नीम की डालियों समेत पत्तियां की चटनी, सीताफल के पत्तों की दो किलो चटनी, दो किलो अरण्ड के पत्तों की चटनी, धतूरा के पत्तों की दो किलो चटनी, शरीफा के दो किलो पत्तों की चटनी, आम के पत्तों की चटनी। चटनी तैयार करने के लिए सील बट्टा का उपयोग करें। लकड़ी क्लॉक वाइज मिलाएं। दक्कन रखें। धीमी आंच पर एक उबाल आने दें। एक उबाल के बाद नीचे रखें। दिन में दो बार सुबह-शाम घोलें। ढक्कन रखें। 48 घंटे बाद कपड़े से छान लें। 6 महीने तक के भंडारण को तैयार है।

फोटो: पद्मश्री सुभाष पालेकर
200 लीटर पानी और 6-8 लीटर ब्रह्मास्त्र एक एकड़ खेत मे बोई गई फसलों की कीट रक्षा के लिए पर्याप्त है। पौधों के छोटे होने पर यह डेढ़ एकड़ तक छिड़का जा सकता है। इससे रस चूसक और सुंडियो का प्रतिबंध होता है। फलों के भीतर रहने वाली इल्लियां नियंत्रित नहीं होतीं हैं।
-आग्नेयास्त्र: 20 लीटर गोमूत्र, दो किलो नीम के पत्तों की चटनी, आधा किलो तम्बाकू चूर्ण, आधा किलो तीखी हरी मिर्च की चटनी, देसी लहसुन 250 ग्राम की चटनी मिलाएं। लकड़ी से घोलने के बाद ढक्कन रखें। धीमी आंच पर एक उबाल आने दें। 48 घंटे ठंडा होने कर बाद इसे दिन में दो बार सुबह शाम घोलें। छाए में रखें। धूप-बारिश से बचाएं। कपड़े से छानें। अब तीन महीने के लिए भंडारण करें। एक एकड़ के लिए पर्याप्त है। 200 लीटर पानी में 6 से 8 लीटर आग्नेयास्त्र मिलाएं। रस चूसक और सभी तरह की इल्लियॉ नियंत्रित होती हैं।
-नीमास्त्र: 200 लीटर पानी, देसी गाय का 10 लीटर गोमूत्र, दो किलो ताजा गोबर, 10 किलो नीम पौधे के छोटे-छोटे डालियां पत्तो समेत डालें और इन्हें क्लॉक वाइज घुमाकर अच्छी तरह से मिलाएं। जूट की बोरी से ढंके। 48 घंटे छाया में रखें। बारिश और सूर्य की सीधी रोशनी से बचाएं। दिन में दो बार सुबह शाम घोलिये। बोरी से ढंके रहिए। 48 घंटे के बाद कपड़े से छानकर भंडारण करें। मिट्टी के बर्तन में भंडारण सबसे उत्तम व्यवस्था है। छह महीने तक उसका उपयोग किया जा सकता है। 200 लीटर निमास्त्र एक एकड़ फसल पर बिना पानी मिलाए छिडकें। रसचूसने वाले कीट नियंत्रित होते हैं। छोटी सुंडिया भी नियंत्रित हो जाती हैं, बड़ी नहीं।

फोटो: यूपी के मुख्यमंत्री व कृषि मंत्री के साथ पद्मश्री पालेकर
इस सम्बंध में पद्मश्री सुभाष पालेकर का कहना है कि इन दवाओं के अलावा शून्य बजट प्राकृतिक खेती में दशपर्णी दवा बनाई गई है। इससे सभी तरह में कीटों का नियंत्रण होता है। यह 10 तरह के पौधों की पत्तियों या फलों से तैयार प्राकृतिक दवा है। इसमें भी गोमूत्र का प्रयोग किया जाता है। शून्य बजट प्राकृतिक खेती से तैयार दवाएं कीट-पतंगों को मारते नहीं हैं, बल्कि उनसे फसलों की सुरक्षा करते है।