जॉब वर्क पर 5 प्रतिशत और कच्चे माल पर 12 प्रतिशत जीएसटी से बढ़ी कालीनों की उत्पादन लागत, निर्यातक बढ़े दाम पर तैयार माल लेने को तैयार नही, लाखों मजदूरो के सामने आया रोजी रोटी का संकट…

शबाब ख़ान (वरिष्ठ पत्रकार)
वाराणसी: गुड्स एण्ड सर्विस टैक्स यानि जीएसटी, इस नई कर प्रणाली का असर दवा मंडियों से लेकर बुनकरों के करघों तक और कानपुर के लेदर उद्योग से लेकर भदोही, वाराणसी, मिराज़ापुर, सोनभद्र, जौनपुर, औराई, घौसिया कॉरपेट बेल्ट पर प्रतिकूल रूप से पड़ा है। लाखों लोगो को रोजगार देने वाला कालीन उद्योग कुछ ऐसा चरमराया कि मजदूरों के सामने रोजी-रोटी का संकट आ गया है।
कालीन मैनुफैक्चर्रस् और एक्सपोर्टर्स का कहना है कि हैण्डमेड यानि हस्तनिर्मित कालीनों का निर्यात जीएसटी लागू होनें के बाद बुरी तरह प्रभावित हुआ है। जॉब वर्क पर 5 प्रतिशत और कालीन बनाने के लिए इस्तमाल होनें वाले कच्चे माल जैसे ऊन, सूती धागा, सिल्क धागा, वेजेटेबिल डाई की खरीद-बिक्री पर 12 प्रतिशत जीएसटी लगाये जाने से हजारों कालीन निर्माताओं नें प्रोडक्शन रोक दिया है, जिससे लगभग 1400 हजार करोड़ का एक्सपोर्ट आर्डर कैंसिल हो गया है, तथा नया आर्डर भी नही मिल रहा है।

File Photo: A Bhadohi Made Hand Knotted Carpet in Persian Design
ऑल इंडिया कॉरपेट मैनुफैक्चरर्स एसोसिएशन के मो० जाबिर कहते हैं कि जीएसटी लागू होनें के प्रोडक्शन कॉस्ट यानि उत्पादन की लागत बढ़ गई है, यही वजह है उत्पादन ठप हो गया है। बढ़े दाम पर कालीन निर्यातक माल लेने को तैयार नही है, क्योकि उन्होनें भी विदेशों से 6 महीने पहले आर्डर बुक किया था जब जीएसटी का नाम-पता भी नही था।
इसके अलावा पेपर वर्क इतना बढ़ गया है कि छोटे-छोटे कालीन बुनकर को भी अकांउटेंट की मदद लेनी पड़ रही है। एक समय सोने की मुर्गी समझी जाने वाली डॉलर नगरी यानि भदोही से कालीन बुनकर पलायल कर रहे है जिससे आने वाले दिनों में हालात और बुरे होते जाएगे। जाबिर बताते है कि अब तक निर्यातको को 9.30 प्रतिशत ड्यूटी ड्रा बैक मिलता है, इसमें भी अब सरकार कटौती करनें जा रही है। यही हालत रही तो पूर्वांचल की कालीन बेल्ट से होने वाला कॉरपेट एक्सपोर्ट 25 से 30 प्रतिशत ही रह जाएगा।
इंडिया कॉरपेट निर्यात के मामले में कालीन के क्षेत्रफल और डॉलर में इसकी कीमत के आधार पर आजतक विश्व बाजार में नंबर वन था, लेकिन जीएसटी लागू होनें के बाद भारत वर्ल्ड मार्केट में चीन, ईरान, टर्की, पाकिस्तान, नेपाल से भी पिछड़ जाएगा। जर्मनी, फ्रॉस, इटली, ऑस्ट्रेलिया, साईप्रस, पोलैंड, अमेरिका, साउथ अमेरिका, बेल्जियम, नारवे जैसे देश के कॉरपेट आयातक अब तक कम कीमत पर अच्छी क्वालिटी के कालीनों के लिए केवल भारत के पूर्वांचल कॉरपेट बेल्ट के निर्यातको को ही आर्डर देते आए हैं, यहां तक की कुछ चीन के कॉरपेट निर्यातक जापान, कोरिया से स्वंय आर्डर लेकर भारत से कॉरपेट बनवाते है और ‘मेड इन चाइना’ का लेबल लगाकर उन्हें निर्यात करते है।

File Photo: A Hand Tufted Indian Carpet on Display
लेकिन अब समय बदल गया है 5 प्रतिशत जाब वर्क पर और 12 प्रतिशत कच्चे माल पर टैक्स लगा देने से सीधा फायदा चीन को मिलेगा। हमारी कालीनें चीन में बनने वाली कालीनों से मंहगी होती जाएगी। जिससे निर्यात घटेगा और देश को कालीनों से मिलने वाली विदेशों मुद्रा घटेगी, नतीजतन देश की इकॉनामी की रीढ़ विदेशी मुद्रा भण्डार भी घटेगा, जिससे दूसरे ट्रेड और व्यापारों पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
जिसमें शिपिंग कंपनियॉ, वूलेन इंडस्ट्री, कॉयर इंडस्ट्री, कोरियर और ट्रॉस्पोर्ट बिज़नेस, इंश्योरेंस इंडस्ट्री में खासकर मैरीन इंश्योरेंस इंडस्ट्री, कलर और डॉई बनाने वाली कंपनियॉ पर गिरता कालीन निर्यात का प्रमुख रूप से प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। डीएचएल के भदोही रीजन मैनेजर रीतुराज बवेजा भी इसकी तस्दीक करते हैं। पूर्वांचल की कालीनों को ट्रक द्वारा मुंबई पोर्ट तक पहुँचाने वाले सबसे बड़े ट्रॉस्पोर्टर ‘सुपर कैरियर’ के मालिक अरुन मिश्रा कहते है कि चार सौ ट्रकों में से हमारी हर गाड़ी हमेशा मुंबई-वाराणसी-भदोही के बीच चलती रहती है, अब जीएसटी के कारण 200 से ज्यादा ट्रक और ड्राईवर फालतू पड़े रहते हैं, सरकार नें अपने पैरों पर खुद कुल्हाड़ी दे मारी है।
मुंबई स्थित तारा शिपिंग के रीजनल मैनेजर एस. आन्नंद कहते है कि पूर्वांचल से आने वाले माल से हमारे 20 और 40 फीट से सभी 500 कंटेनर हमेशा बुक रहते थे। वेसेल को मुंबई पोर्ट से रवाना होने में समय नही लगता था, अब हमें अपनें कंटेनरों के पूरा भर जाने का इंतजार करना पड़ता है।

File Photo: One of an Indian Stall displaying Hand Made and Tufted Carpets during Domotex Trade Fair at Frankfurt, Germany
ईस्टर्न यूपी एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष कहते है कि निर्यात का ग्रॉफ़ लगातार गिरता जा रहा है। पुरानें आर्डर के माल को निर्यातक कालीन निर्माताओं से बढ़े रेट पर लेने को तैयार नही है, जिससे अब तक तकरीबन 1400 हजार करोड़ का आर्डर निरस्त हो चुका है। आगे यह सिलसिला जारी रहेगा। उल्लेखनीय है कि पूर्वांचल कॉरपेट बेल्ट का कुल वार्षिक निर्यात अब तक 8000 हजार करोड़ का था जो जीएसटी की मार से बहुत तेजी से नीचे आ रहा है।