विचार। ससुराल में वो पहली सुबह आज भी याद है सुरभी को। कितना हड़बड़ा के उठी थी, ये सोचते हुए कि देर हो गयी है और सब ना जाने क्या सोचेंगे?
एक रात ही तो नए घर में काटी है वह और इतना बदलाव आ गया सुरभी में। जैसे आकाश में उड़ती चिड़िया को, किसी ने सोने के मोतियों का लालच देकर, पिंजरे में बंद कर दिया हो।
शुरू के कुछ दिन तो यूँ ही गुजर गए। इधर-उधर घूम कर जब वापस आयी, तो सासू माँ की आंखों में खुशी तो थी, लेकिन बस अपने बेटे के लिए ही दिखी उसके लिए नहीं।
सुरभी सोची, शायद नया नया रिश्ता है, एक दूसरे को समझने मे देर लगेगी। लेकिन समय ने जल्दी ही एहसास करा दिया कि वह यहाँ बहु हूँ। जैसे चाहेगी वैसे नही रह सकती। कुछ कायदा, मर्यादा हैं, जिनका पालन उसे करना होगा। धीरे धीरे बात करना, धीरे से हँसना, सबके खाने के बाद खाना, ये सब आदतें, जैसे अपने आप ही आ गयींसुरभी में।
घर में माँ से भी कभी-कभी ही बात होती थी उसकी। धीरे-धीरे पीहर की याद सताने लगी उसे। ससुराल में पूछा, तो कहा गया — अभी नही, कुछ दिन बाद।
जिस पति ने कुछ दिन पहले ही मेरे माता पिता से, ये कहा था कि पास ही तो है, कभी भी आ जा सकती है उनके भी सुर बदले हुए थे।
अब धीरे धीरे समझ आ रहा था उसे, कि शादी कोई खेल नही। इसमें सिर्फ़ घर नही बदलता, बल्कि आपका पूरा जीवन ही बदल जाता है।
आप कभी भी उठके, अपने पीहर नही जा सकते। यहाँ तक कि कभी याद आए, तो आपके पीहर वाले भी, बिन पूछे नही आ सकते।
पीहर का वो अल्हड़पन, वो बेबाक हँसना, वो जूठे मुँह रसोई में कुछ भी छू लेना, जब मन चाहे तब उठना, सोना, नहाना, सब बस अब यादें ही रह जाती हैं।
अब सुरभी को समझ आने लगा था, कि क्यों विदाई के समय, सब मुझे गले लगा कर रो रहे थे? असल में उससे दूर होने का एहसास तो उन्हें हो ही रहा था, लेकिन एक और बात थी, जो उन्हें अन्दर ही अन्दर परेशान कर रही थी, कि जिस सच से उन्होंने सुरभी को इतने साल दूर रखा, अब वो उसके सामने आ ही जाएगा।
पापा का ये झूठ कि वो उनकी बेटी नही बेटा है, अब और दिन नही छुप पायेगा। उनकी सबसे बड़ी चिंता ये थी, अब उनका ये बेटा, जिसे कभी बेटी होने का एहसास ही नही कराया था, जीवन के इतने बड़े सच को कैसे स्वीकार करेगा?
माँ को चिंता थी कि उनकी बेटी ने कभी एक ग्लास पानी का नही उठाया, तो इतने बड़े परिवार की जिम्मेदारी कैसे उठाएगी?
सब इस विदाई और उसके पराये होने का मर्म जानते थे, सिवाये सुरभी के।
इसलिए सब ऐसे रो रहे थे, जैसे वह डोली में नहीं, अर्थी में जा रही हैं।
आज सुरभी को समझ आया, कि उनका रोना ग़लत नही था। *हमारे समाज का नियम ही ये है, एक बार बेटी डोली में विदा हुयी, तो फिर वो बस अर्थी में ही आती है।